सौरभ से होली पर मिला तो कुछ उदास था, और उदासी में उसको कविता करने की सूझती है...
"कहाँ रही वो होली यारो,
कहाँ रह गए सारे रंग,
अब बस... हम हैं, अकेले,
और एक नया दिन,
और एक नयी जंग।"
मैंने कहा, भाई आगे बढ़ने के साथ पुराना पीछे छूटना लाज़मी है। इस पर उसने एक ठंडी साँस ली और मुझे पीछे छोड़ कर आगे बढ़ गया।
Tuesday, April 6, 2010
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naya din aur nai jang......
ReplyDeletekitna achha hota ki kash ham bachhe hi hote....nice....